Table of Contents

विटामिन D: कमी, लक्षण, स्रोत और उपचार

Vitamin D हमारे शरीर के लिए एक जरूरी पोषक तत्व है, जो हड्डियों को मजबूती देने के साथ-साथ इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है। बदलती जीवनशैली और सूर्य की रोशनी से दूरी की वजह से आजकल इसकी कमी आम हो गई है। इस लेख में हम जानेंगे विटामिन D क्या है, इसके प्राकृतिक स्रोत, कमी के लक्षण, उससे जुड़ी बीमारियां और सही उपचार।

Vitamin D

Vitamin D क्या है?

विटामिन D एक फैट-सोल्यूबल (वसा-घुलनशील) विटामिन है, जो शरीर के लिए हार्मोन जैसा कार्य करता है। यह मुख्य रूप से शरीर को कैल्शियम और फॉस्फोरस को अवशोषित करने में मदद करता है, जो हड्डियों, दांतों और मांसपेशियों के लिए आवश्यक है।

VitaminD (विटामिनD) को दो मुख्य रूपों में बांटा गया है :-

1. D2 (एर्गोकैल्सीफेरॉल) :- यह मुख्यतः पौधों और
फोर्टिफाइड फूड में पाया जाता है।

2. D3 (कोलेकैल्सीफेरॉल) :- यह सूरज की रोशनी से
त्वचा में बनता है और कुछ पशु स्रोतों में भी होता
है।

-: Vitamin D के मुख्य स्रोत:-

विटामिन D के स्रोत दो प्रकार के होते हैं – प्राकृतिक और आहार पूरक (सप्लीमेंट्स)।

-: प्राकृतिक स्रोत :-

सूर्य की रोशनी –

  • यह विटामिन D का सबसे अच्छा स्रोत है।
  • सूर्य की अल्ट्रावायलेट B (UVB) किरणें त्वचा के
  • संपर्क में आने पर विटामिन D3 बनाती हैं।
  • सुबह 8 से 10 बजे के बीच 10 से 30 मिनट तक धूप
    सेंकना पर्याप्त माना जाता है।

 

-:आहार स्रोत:-

  • मछली – सालमन, टूना, मैकेरल
  • मछली का तेल – कॉड लिवर ऑयल
  • दूध और दूध से बने उत्पाद
  • अंडे की जर्दी
  • फोर्टिफाइड फूड्स – जैसे विटामिन D युक्त दूध,
    अनाज, सोया दूध

-:Vitamin D (विटामिनD) की कमी के प्रभाव:-

Vitamin D/विटामिन D की मात्रा शरीर मे कम होने से  जैविक प्रक्रियाएं  प्रभावित होती है। इसका सीधा असर हड्डियों और इम्यून सिस्टम पर पड़ता है। विटामिन D की कमी के निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं :-

  • शरीर में कैल्शियम का अवशोषण घट जाता है,जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
  • इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, जिससे बार-बार  सर्दी-खांसी या संक्रमण होता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य पर असर – मूड स्विंग, थकान और डिप्रेशन के लक्षण बढ़ सकते हैं।
  • मांसपेशियों में दर्द और कमजोरी की शिकायत रहता है।

 

-:Vitamin D(विटामिन) D की कमी के लक्षण:-

विटामिन D की कमी धीरे-धीरे विकसित होती है, और इसके लक्षण लंबे समय बाद स्पष्ट होते हैं :-

लक्षण :-

  • हड्डियों में दर्द – विशेषकर पीठ और जाँघ में
  • मांसपेशियों में कमजोरी – विशेषकर बुजुर्गों में गिरने का खतरा
  • अत्यधिक थकावट – बिना मेहनत के थकान लगना
  • बार-बार बीमार पड़ना – इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है
  • बाल झड़ना    – खासकर महिलाओं में अधिक देखा जाता है
  • नींद न आना – अनिद्रा या बेचैनी महसूस होना
  • डिप्रेशन – मूड बार-बार बदलना, निराशा महसूस होना

विटामिन D की कमी से होने वाली समस्याएँ
और बीमारियां :-

यदि विटामिन D की कमी लम्बे समय तक बनी रहती है तो यह गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकती है ।

 

बच्चों में :-

  1. रिकेट्स (Rickets) 

  • यह हड्डियों को मुलायम बना देता है, जिससे पैरों में
    टेढ़ापन आ जाता है।
  • दांतों की ग्रोथ रुक जाती है।
  • मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं।

 

वयस्कों में :-

   2. ऑस्टियोमलेशिया (Osteomalacia) 

हड्डियों में दर्द और मांसपेशियों में कमजोरी मुख्य
लक्षण हैं।

  3. ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) 

हड्डियाँ खोखली और कमजोर हो जाती हैं, जिससे

फ्रैक्चर का खतरा बढ़ता है।

4. हृदय रोग 

कुछ शोधों के अनुसार विटामिन D की कमी हृदय
स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है।

5. डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर से भी जुड़ाव पाया
     गया है।

 6. स्वप्रतिरक्षित रोग (Autoimmune diseases)

जैसे मल्टीपल स्क्लेरोसिस, रुमेटाइड अर्थराइटिस
आदि।

 

-:Vitamin D की कमी का उपचार:-

 (A) प्राकृतिक उपाय :-

   1. सूर्य स्नान (Sun Bath)

सुबह 8 से 10 बजे तक 15–20 मिनट धूप में रहना।

त्वचा का 30–40% हिस्सा खुला होना चाहिए (जैसे
हाथ, चेहरा, गर्दन)।

    2. संतुलित आहार

डाइट में विटामिन D युक्त खाद्य पदार्थ शामिल करें।

सप्ताह में 2–3 बार मछली खाना फायदेमंद है।

दूध, दही, अंडे आदि नियमित सेवन करें।

(B) आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

   1. गो दुग्ध सेवन (गाय का दूध) 

देशी गाय का ताजा दूध आयुर्वेद में श्रेष्ठ माना गया है।

   2. तिल का तेल और नारियल तेल

इनका बाह्य और आंतरिक प्रयोग(भोजन के माध्यम
से) हड्डियों को मजबूत करता है।

   3. आंवला और गिलोय

रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाते हैं, जिससे

शरीर में विटामिन्स का बेहतर उपयोग होता है।

(C) चिकित्सा उपचार

  1. विटामिन D सप्लीमेंट्स

डॉक्टर की सलाह से D2 या D3 की गोलियां या सिरप
लेना चाहिए।

सामान्य डोज : 600 से 2000 IU प्रतिदिन, यह कमी
के स्तर पर निर्भर करता है।

शिशुओं के लिए डॉक्टर द्वारा निर्धारित मात्रा
आवश्यक होती है।

   2. इंजेक्शन थेरेपी

जब शरीर में गंभीर कमी हो तो डॉक्टर विटामिन D के
इंट्रामस्कुलर(IM) इंजेक्शन भी देते हैं।

 

-:सावधानियां:-

विटामिन D की अधिकता (Hypervitaminosis
D) भी नुकसानदेह हो सकती है। इससे कैल्शियम का
स्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता हैं (Hypercalcemia)

सप्लीमेंट लेने से पहले रक्त जांच (25(OH)D टेस्ट)
अवश्य कराएं।

बच्चों और गर्भवती महिलाओं को विशेष ध्यान देने की
जरूरत है।

-:निष्कर्ष:-

विटामिन D हमारी जीवनशैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए। सूरज की रोशनी से दूरी, बाहर कम जाना, और आधुनिक खानपान की वजह से इसकी कमी तेजी से बढ़ रही है। इस कमी को नजरअंदाज करना भविष्य में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को आमंत्रण देना है।

इसलिए आज से ही :-

रोजाना सुबह की धूप में थोड़ा समय बिताइए।
अपने आहार में विटामिन D युक्त चीजें जोड़िए।
और जरूरत पड़े तो डॉक्टर से सलाह लेकर सप्लीमेंट
लीजिए।

स्वस्थ जीवन के लिए विटामिन D को अपनी दिनचर्या में स्थान दें।

-:इसे भी पढ़ें:-

 Vitamin E: हेल्दी स्किन, हेयर और इम्यूनिटी का पावर बूस्टर

 Vitamin K: कमी और अधिकता से होने वाली बीमारियाँ और बचाव