Arthritis/गठिया वात : कारण, लक्षण, प्राकृतिक और घरेलू उपचार
Arthritis/गठिया वात एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें इम्यून सिस्टम(प्रतिरक्षा तंत्र)अपने ही शरीर के जोड़ों पर हमला करती है। जिससे सूजन, दर्द, जकड़न और धीरे-धीरे हड्डियों का क्षय होने लगता है।
आयुर्वेद के अनुसार गठिया वात एक प्रकार का वात रोग है ,जिसमें शरीर में वात दोष बढ़ जाता है और कमजोर पाचन शक्ति के कारण “आम” (विषाक्त पदार्थ) बनता है। ये आम(विषाक्त पदार्थ)जोड़ों में जमकर दर्द और सूजन पैदा करता है। इस रोग में चलने-फिरने, उठने-बैठने में कठिनाई होती है और जोड़ों में अकड़न महसूस होती है।

-: Arthritis/गठिया के प्रमुख कारण :-
- प्रतिरक्षा प्रणाली में गड़बड़ी
- आनुवांशिकता
- वायरल/बैक्टीरियल संक्रमण
- हॉर्मोनल असंतुलन
- तनाव, मोटापा, अनियमित दिनचर्या
-: Arthritis/गठिया वात के लक्षण :-
- जोड़ों में सूजन, दर्द और गरमाहट
- सुबह जोड़ों में जकड़न
- थकान, हल्का बुखार
- वजन घटना(कुछ मामलों में), कमजोरी
-: Arthritis/गठिया वात के प्रकार :-
1. Rheumatoid Arthritis (RA)
यह सबसे आम प्रकार है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली जोड़ों को नुकसान पहुंचाती है।
RA के कारण :-
- इसका सटीक कारण अभी तक ज्ञात नहीं है लेकिन यह माना जाता है कि यह जेनेटिक, पर्यावरणीय कारकों और संक्रमण के कारण उत्पन्न होता है।
- यह एक स्व-प्रतिरक्षी बीमारी है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली जोड़ों के ऊतकों पर हमला करती है।
- तनाव, धूम्रपान और हार्मोनल बदलाव को जोखिम कारक माना जाता है।
2. Osteoarthritis (OA)
उम्र बढ़ने और जोड़ों के घिसने के कारण होता है।
Osteoarthritis के कारण :-
- उम्र बढ़ना
- अधिक वजन जोड़ों पर अधिक दबाव डालता है
- चोट या जोड़ों की पुरानी खराबी
- आनुवंशिकी (परिवार में OA का होना)
- पेशेवर कारण जैसे – लगातार जोड़ पर दबाव या भारी काम
- हार्मोनल बदलाव – महिलाओं में मेनोपॉज के बाद जोखिम बढ़ना
3. Juvenile Arthritis
बच्चों(16 वर्ष से कम)में होने वाला गठिया जिसमें जोड़ों के साथ-साथ त्वचा और आंखें भी प्रभावित हो सकती हैं।
Juvenile Arthritis के कारण :-
- जीन संबंधी विरासत (Genetics) – परिवार में इससे पीड़ित किसी सदस्य का होना जोखिम बढ़ाता है।
- पर्यावरणीय कारण – जैसे वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण, प्रदूषण।
- प्रतिरक्षा प्रणाली की गड़बड़ी – शरीर अपने ही जोड़ और ऊतकों पर हमला करता है।
4. Gout (गठिया पित्त)
यह शरीर मे यूरिक एसिड के बढ़ने से होता है। इसके कारण जोड़ो, एड़ी, पैरों के अंगूठे में तेज दर्द होता हैं।
- गाउट के मुख्य कारण :-शरीर में यूरिक एसिड का अधिक बनना।
- गुर्दे (Kidneys) द्वारा यूरिक एसिड का ठीक से बाहर न निकलना।
- प्यूरीन (Purine) से भरपूर आहार लेना जैसे –लाल मांस (Red Meat),मछली, सी-फ़ूड,शराब, बियर
- फ्रुक्टोज वाले पेय
5. Psoriatic Arthritis
सोरायसिस त्वचा रोग से जुड़ा गठिया जिसमें त्वचा पर चकत्ते और जोड़ों में सूजन होती है।लगभग 20–30% सोरायसिस के मरीजों को आगे चलकर Psoriatic Arthritis हो सकता है।
कारण (Causes) :-
- Autoimmune प्रतिक्रिया – शरीर खुद के ही टिश्यू को दुश्मन मान लेता है।
- आनुवांशिक (Genetic) – परिवार में किसी को सोरायसिस/आर्थराइटिस हो तो संभावना बढ़ जाती है।
- पर्यावरणीय कारण – इन्फेक्शन, तनाव, चोट, धूम्रपान, शराब सेवन आदि।
- इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी।
6. Ankylosing Spondylitis
यह रीढ़ की हड्डी में सूजन पैदा करता है, जिससे पीठ में जकड़न और झुकाव आता है।
मुख्य कारण (Causes) :-
- Autoimmune Disease – शरीर का इम्यून सिस्टम अपनी ही हड्डियों/जोड़ों पर हमला करता है।
- अनुवांशिक कारण (Genetics): HLA-B27 नामक जीन वाले लोगों में इसकी संभावना ज़्यादा होती है।
- पुरुषों में यह महिलाओं की तुलना में 2–3 गुना अधिक होता है।
- ज्यादातर यह बीमारी किशोरावस्था या युवावस्था (15–35 साल) में शुरू होती है।
7. Reactive Arthritis
संक्रमण के बाद होने वाला गठिया जो मूत्रमार्ग, आंत या जननांग संक्रमण के बाद आता है।
- यौन संक्रमण (STI) – Chlamydia trachomatis
- आंत्र संक्रमण (Food poisoning) – Salmonella, Shigella, Campylobacter, E. coli
- कभी-कभी गले या मूत्र मार्ग के संक्रमण के बाद भी।
- जिन लोगों में HLA-B27 जीन होता है, उनमें यह ज़्यादा पाया जाता है।
-: Arthritis से बचाव के उपाय :-
- संतुलित आहार लें
- वजन नियंत्रित रखें
- धूम्रपान व शराब से दूर रहे
- ठंडी जगह से परहेज करें
- योग और व्यायाम करें
-: Arthritis/गठिया में परहेज :-
- दही, छाछ, आइसक्रीम
- तली-भुनी चीजें
- बैंगन, आलू, टमाटर
- ज्यादा प्रोटीनयुक्त चीजें
-: Arthritis के लिए व्यायाम व योग :-
- सुबह हल्की सैर, हाथ-पैरों की स्ट्रेचिंग
- घुटनों को मोड़ना/सीधा करना
- ताड़ासन, भुजंगासन, वृक्षासन, मंडूकासन करें
- नियमित प्राणायाम- अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, कपालभाति करें
- शरीर को जितना सक्रिय और गतिशील रखेंगे, उतना ही जोड़ मजबूत होंगे
-: आयुर्वेद के अनुसार गठिया वात का इलाज :-
आयुर्वेद गठिया वात में तीन बातें मानता है—
- पाचन को ठीक करना ताकि “आम”(विषाक्त पदार्थ)न बने।
- वात दोष को संतुलित करना।
- शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर करना।
*इसके लिए आयुर्वेद में नियमित आहार-विहार, योग, औषधीय पौधों का सेवन और पंचकर्म विधि का किया जाता है।
-: प्राकृतिक उपाय :-
औषधीय पौधे एवं उनकी प्रयोग विधि –
- अश्वगंधा – सुबह-शाम 2-3 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण दूध या गुनगुने पानी में मिलाकर पिएं।लगातार 4-6 हफ्ते सेवन करें।
- गुग्गुलु – 500mg से 1 ग्राम गुग्गुलु टेबलेट या चूर्ण गर्म पानी के साथ सुबह-शाम लें।डॉक्टर की सलाह अनुसार खुराक बदलें।
- सुन्थ (सूखा अदरक) – आधा से एक ग्राम सुन्थ चूर्ण गर्म पानी या दूध के साथ लें।चाहें तो शहद और नींबू मिलाकर काढ़ा बनाएं और रोज पी सकते हैं।
- हल्दी – चौथाई चम्मच हल्दी पाउडर दूध या गुनगुने पानी में मिलाकर रोज लें।
- हल्दी और शहद मिलाकर सेवन करने भी सूजन में फायदा मिलता है।
*ये सभी औषधियां शरीर में दर्द, सूजन और जकड़न को कम करती हैं और ताकत देती हैं।
-: घरेलू नुस्खे :-
- मेथी के दाने – रात में 1 चम्मच (लगभग 10 ग्राम) मेथी दाना पानी में फुलने दें और सुबह छानकर खाली पेट खाएं
- लहसुन – 2-3 लहसुन की कली सुबह खाली पेट खाएं
- सरसों तेल में लहसुन कि कलियां गर्म करके मालिश करें
- गरम सेक – बलूक (रेत) का पोटली सेक या हॉट वाटर बैग से सेक करें
- संधिवात(गठिया) में तिल का तेल या गाय के घी से मालिश करें आराम पहुंचाता है
- पंचकर्म थेरेपी (बस्ती, स्वेदन, अभ्यंग) डॉक्टर की सलाह से करवा सकते हैं
-: आहार व खानपान :-
- हल्का सुपाच्य भोजन करें
- हरी सब्जियां, दाल, आंवला, गिलोय का सेवन करें
- तली-भुनी चीज़ें, बासी खाना, जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक से बचें
- गर्म और ताजा खाना खाएं
- मीठा, खट्टा, नमकीन स्वाद के लिए सीमित मात्रा ठीक है
-: ध्यान रखने योग्य बातें :-
- कोई भी औषधि या घरेलू उपाय केवल आराम और सहायता के लिए है
- गंभीर दर्द, बुखार या अन्य समस्या होने पर डॉक्टर/आयुर्वेदाचार्य की सलाह अवश्य लें
- गठिया का इलाज लम्बा है, लेकिन धैर्य, सही दिनचर्या और नियमित उपचार से राहत मिल जाती है
-: निष्कर्ष :-
गठिया वात एक दीर्घकालिक लेकिन नियंत्रित करने योग्य बीमारी है। यदि समय पर निदान, सही आहार, नियमित योग व आयुर्वेदिक चिकित्सा को अपनाया जाए, तो व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है।
ध्यान दें :-
यह लेख केवल शैक्षिक उद्देश्य से है। किसी भी उपचार से पहले योग्य आयुर्वेदाचार्य या चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।
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